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कविता

आलू

नरेंद्र जैन


जब कुछ भी नहीं हुआ करता
आलू जरूर होते हैं
जब कुछ भी नहीं होगा
आलू होंगे जरूर
स्वाद से ज्यादा
भूख से ताल्लुक रखते हैं
आलू
एक अदद आलू हो
तो पानीदार सब्जी बना ही लेती हैं स्त्रियाँ
मिट्टी में दबे आलू
मिट्टी से बाहर आकर
प्रसन्नता व्यक्त करते हैं
जब
आँच में भूने जाते हैं वे
भूखा आदमी कह उठता है
'खुदा का शुक्र है
यहाँ आलू हैं'


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